भारतीय नागरिक और मानवाधिकार
किसी भी व्यक्ति के लिए इंसान होना काफी नहीं होता बल्कि अहम् होता है मानव गरिमा से परिपूर्ण जीवन होना ,मानव गरिमा को मुकम्मल करने वाले बुनियादी अधिकारों को मानवाधिकार के रूप में दुनिया में मान्यता दी जाती है | दितीय विश्व युद्ध के बाद व्यक्ति के मानव अधिकारों की हर कीमत पर रक्षा करने की शपथ लेते हुए 10 दिसंबर १९४८ में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में ४८ देशो के समूह ने समूची मानव जाति के मूलभूत अधिकारों की व्यवस्था करने हेतु एक चार्टर पर हस्ताक्षर किये गये | भारत ने भी व्यवस्था में सहमती जताते हुए इस पर हस्ताक्षर किये हालाकि देश में मानवाधिकार से सम्बंधित स्वतंत्र संस्था बनने में ४५ वर्षे लग गये और १९९३ में एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अस्तित्व में आया ,जो समय समय पर मानवाधिकार के सन्दर्भ में केंद्र और राज्यो को अपनी अनुसंशाये भेजता है |आज देश में जिस तरह का माहौल आये दिन देखने को मिलता है वेसे में मानवाधिकार और उससे जुड़े आयामों पर चर्चा महत्वपूर्ण हो जाती है की भारतीय नागरिक अपने मानवाधिकारों का संरक्षण किस प्रकार करे | देश भर में मॉब लिंचिंग की घटनाये ,बिहार के मुजफ्फरपुर और उसके तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के देवरिया में शेल्टर होम की बच्चियों के साथ हुए विभत्सय कृत्य में देश में मानवाधिकारो की धज्जिया उड़ाते हुए देखा गया है| कई विवादास्पद घटनाये मसलन ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उत्पन्न दंगे ,बाबरी मस्जिद ध्वस्त होने के बाद देश भर में हुए फसाद ,गुजरात में हुए हिन्दू मुस्लिम दंगे ,कश्मीर में आये दिन हो रहे दंगे इत्यादि के समय भी देश के नागरिको के मानवाधिकारो का हनन किसी से छिपा नहीं है ,हलाकि ऐसे कई मसले हमें देखने को मिल जाते है जब मानवाधिकारो के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा उठाते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अपने कर्तव्यो का बखूबी पालन करता है लेकिन फिर भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कई मामलो पर अपनी अनुशंसाये देने में खुद को लाचार पा रहा है तो क्या इसे निष्प्रभावी संस्था मान लिया जाय| लिहाजा सवाल उठता है की इस लाचारी के क्या कारण है और क्या इस लाचारी का कोई समाधान है,पर यह जानना आवश्यक है की मानवाधिकार से क्या तात्पर्य है ?
मानवाधिकार हर व्यक्ति का नैसर्गिक या प्राकृतिक अधिकार है |इसके दायरे में जीवन ,आजादी ,बराबरी और सम्मान का अधिकार आ जाता है | इसके अतिरिक्त गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार, राजनीतिक, सामाजिक ,आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी इसमे शामिल है | संयुक्त राष्ट्र संघ दवारा अपनाये गये मानवाधिकार सम्बन्धी घोषणा पत्र में कहा गया था की मानव के बुनियादी अधिकार किसी भी,जाति ,धर्म ,लिंग ,समुदाय ,भाषा ,समाज आदि से इतर होते है तथा मौलिक अधिकार से भी भिन्न होते है |मौलिक अधिकार देश के संविधान में उलेल्खित अधिकार है यह अधिकार देश के नागरिको को किन्ही परिस्थितियों में ,देश में निवास कर रहे सभी लोगो को प्राप्त होते है | स्पष्ट है की मौलिक अधिकार के कुछ तत्व मानवाधिकार के अंतर्गत भी आते है जैसे जीवन ,स्वतंत्रता,का अधिकार इत्यादि
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
भारत में मानवाधिकारो की रक्षा करने की दिशा में राष्ट्रीय मानवाधिकार देश की सर्वोच्च संस्था है | भारत ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन करके और राज्य मानवाधिकार आयोग की व्यवस्था करके मानवाधिकारो के उलंघन से निपटने हेतु एक मंच प्रदान किया है | भारत में मानवाधिकारो की रक्षा के सन्दर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग देश की सर्वोच्च संस्था के साथ साथ मानवाधिकारो का लोकपाल भीं है |
- उच्चतम न्यायलय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश इसके अध्यक्ष होते है साथ ही यह राष्ट्रीय मानवाधिकारो के वैश्विक गटबंधन का हिस्सा है |यह राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान के एशिया पेसिफिक फोरम का संस्थापक सदस्य भी होता है|
- एक बहुसदस्यीय निकाय है जिसमे अध्यक्ष सहित ४ सदस्य है|
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मानवाधिकार का संरक्षण एवं संवर्धन का अधिकार प्राप्त है| मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 12 (ज )में यह परिकल्पना भी की गयी है की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानवाधिकार साक्षरता का प्रसार करेगा और प्रकाशनों और अन्य उपलब्ध साधनों के जरिये इन अधिकारों का संरक्षण करने के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता फेलायेगा| इस आयाग ने देश में आम नागरिको ,बच्चो ,महिलाओ ,वृद्धजनों के मानवाधिकार ,LGBT समुदाय के लोगो के अधिकारों की रक्षा के लिए समय समय पर अपनी शिफारिसो सरकार तक पहुचाई है और सरकार ने कई शिफरिसो पर अमल करते हुए संविधान में उपयुक्त संसोधन भी किये है |
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य
- शिकायते प्राप्त करना तथा लोक सेवको दवारा हुए भूल चुक अथवा लापरवाही से किये गये मानवाधिकारो के उलंघन की जाँच पड़ताल शुरू करना शामिल इसमें शामिल है ताकि मानवाधिकारो के उलंघन को रोका जा सके | एक आंकड़ो के अनुसार अप्रैल २०१७ के दौरान आयोग दवारा नागरिको ,राजनीतिक ,सामाजिक ,और सांस्कृतिक अधिकारों के कथित उलन्न्घन के ४९ मामलो की मौको पर जाँच की गयी |
- कैदी की जीवन दशाओ का अध्ययन करना ,न्यायिक हिरासत तथा पुलिस हिरासत में हुए मृत्यु की जाँच पड़ताल करना भी आयोग के कार्यक्षेत्र में शामिल है,साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानवाधिकार से सम्बंधित राष्ट्रीय संधियों एवं अन्य संबधित दस्तावेजो का अध्ययन और उसके प्रभावी अनुपालन की शिफारिस भी करता है |
- भारत में मानवाधिकारो को बढ़ावा देने के उद्येश्य से मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध कार्य करना भी राष्ट्रीय मानवाधिकार के क्षेत्र के अंतर्गत आता है|
- इसके आलावा यह आयोग और भी कार्य करता है मसलन समाज के विभिन्न वर्गों में मानवाधिकार से सम्बंधित जागरूकता बढ़ाना ,किसी लंबित वाद के मामलों में न्यायलय की सहमती से उस वाद को निपटारा करवाना इत्यादि|
- लोकसेवको दवारा किसी भी पीड़ित व्यक्ति या उसके सहत्यातार्थ किसी भी अन्य व्यक्ति के मानवाधिकारो के हनन के मामले की शिकायत की सुनवाई करना ,मानसिक अस्पताल अथवा किसी अन्य संस्थानों में कैदी के रूप में रह रहे व्यक्ति के जीवन की स्थिति की जाँच की व्यवस्था करना ,संविधान तथा अन्य कानूनों के सन्दर्भ में मानवाधिकारो के संरक्षण के प्रावधानों की समीक्षा करना तथा ऐसे प्रावधानों को प्रभावी पूर्ण ढंग से लागु करने के लिए शिफारिस कारना ,आतंकवाद या अन्य विध्वंशक कार्य के सन्दर्भ में मानवाधिकार को समीति की जाँच करना ,गैर सरकारी संगठनो व् अन्य ऐसे संगठनो को बढ़ावा देना जो मानवाधिकारो को प्रोत्साहित करने तथा संरक्षण देने के क्षेत्र में शामिल है इत्यादि |
इस प्रकार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत में व्यक्ति के मानवाधिकार के संरक्षण के विषय में विविध कार्यो का आगे बढ़कर संपादन कर रहा है परन्तु यह देखा गया है की इतना होने के बावजूद भी व्यक्ति के मानवाधिकार की जिस तरह रक्षा होना चाहिए वह हो नहीं पाती |
भारत में मानवाधिकारो की स्थिति
भारत में मानवाधिकारो की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल है क्योकि भारत का विशाल आकर, विविधता, विकासशील तथा संप्रभुता,प्रभुत्व सम्पनं धर्म निरपेक्ष्य ,लोकतान्त्रिक राज्य के रूप में इसकी प्रतिष्ठा तथा पूर्व औपनिवेशिक राज्य के रूप मे इसकी प्रतिष्ठा तथा पूर्व औपनिवेशिक राज्य के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरुप भारत में मानवाधिकारो की परिस्थिति भी एक प्रकार से जटिल हो गया है| भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है जिसमे धर्म की स्वतंत्रता भी नीहित है इसके बावजूद राजनीतिक कारणों से कट्टरपंथीयो दवारा आये दिन सांप्रदायिक दंगे करवाया जाना आम बात है | इसमे किसी एक धर्मं के मौलिक अधिकारो का हनन नहीं होता है बल्कि उन सभी लोगो के मानवाधिकार आहत होते है जो इस घटना के शिकार होते है तथा जिनका घटना से कोई सम्बन्ध नहीं होता,जैसे मासूम बच्चे, गरीब पुरुष ,महिलाये ,वृद्धजन इत्यादि
दूसरी और भारत के कुछ राज्यों से आस्फा कानून इसलिए हटा देये गये ,क्योकि इस कानून का हटना एक बहुत बड़ा उदाहरण है जो दर्शाता है की सैन्य बल के जरिए सैन्य बलों को दिए गये विशेष अधिकार के दुरूपयोग होने की बात सामने आने लगी थी | उदाहरण के तौर पर बिना किसी वारंट किसी के घर की तलाशी लेना ,किसी असंदिगध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार करना, यदि कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है, अशांति फैलता है तो उसे प्रताड़ित करना ,महिलाओ के साथ दुर्वयवहार करना इत्यादि खबरे अक्सर अखबारों में रहती है लिहाजा सवाल उठता है की आजादी के इतने वर्षो के बाद भी भारत में नागरिक के मानवाधिकार पल पल किसी न किसी तरह प्रताड़ना का दंश क्यों झेल रहा है ऐसे में यह बताना जरुरी हो जाता है कि इसी कौन सी चुनौतिया है जिनके कारण राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानवाधिकारो की सुरक्षा करने में खुद को लाचार पा रहा है|
मानवाधिकारो की प्रमुख चुनौतिया
- आयोग की शिफारिस का केंद्र तथा राज्य सरकारों दवारा मानने के लिए बाद्य नहीं होना |
- राजनीतिक इच्क्षा शक्ति का आभाव बड़ा कारण है हर जिले में एक मानवाधिकार आयोग स्थापित करना मात्र कागजो में ही सिमट कर रह गया|
- राज्य मानवाधिकार आयोग दवारा केंद्र से जवाब तलब नहीं कर सकता है जिससे सशस्त्र बल भी उसके दायरे से बहार है| यहाँ तक की राष्ट्रीय आयोग भी सशस्त्र बलो पर मानवाधिकार के हनन का आरोप लगने पर केंद्र से महज रिपोर्ट मांग सकता है जबकि गवाहों को बुला नहीं सकता ,उसकी जाँच पड़ताल पुछ ताछ नहीं कर सकता |
- आयोग के पास मुआवजा दिलाने के लिए सक्रियता तो है परन्तु आरोपियों को पकड़ने की दिशा में जाँच पड़ताल करने का कोई अधिकार नहीं है सरल शब्दों में कहे तो आज भी मानवाधिकार आयोग के पास सीमित शक्तिया है| मानवाधिकार संरक्षण कानून के तहत शिकायतों की जाँच नहीं कर सकता जो घटना होने के 1 साल बाद दर्ज करायी गयी है लिहाजा अनेक शिकायतों बिना जाँच के ही रह जाती है |
- पदों का खाली पड़े रहना,संसाधनों की कमी, मानवाधिकार के प्रति जनजागरूकता की कमी, अत्यधिक शिकायत आना और आयोगों के अन्दर नौकरशाही ढररे की कार्य शैली इत्यादि | समस्या वही है हालाँकि यह तमाम कारण जाने पहचाने है परन्तु इन कारणों को गंभीरता से नहीं लिया गया| लिहाजा अपने उदेशेयो को पूरा करने के लिए यह आयोग खुद को लाचार पाता है इस स्थिति में मानवाधिकार आयोग भी सवालों के दायरे में आ गया है इसकी तुलना उस गाय से की जाने लगी है जो चारा भी खाती है,जिसकी देखभाल भी होती है परन्तु दूध नहीं दे सकती |
लोगों का कहना है की मानवाधिकार आयोग भारत के आम आदमीयो के लिए है तो भारत के दूर-दराज इलाकों में रह रहे लोग जहाँ अशिक्षा व् गरीबी व्याप्त है अपनी मूलभूत अधिकारों के बारे में अनजान क्यों है ?
स्वयं मानवाधिकार आयोग के सदस्य तभी सचेत होते है जब किसी क्षेत्र विशेष में कोई बहुत बड़ा हादसा हो गया हो जैसे बलात्कार ,फेंक इनकाउंटर,जातिगत व् सांप्रदायिक हिंसा आदि | इन परिस्थिति में क्या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य मानवाधिकार आयोग को एक निष्प्रभावी संस्था मान लिया जाय | क्या इनका हल सर्वोच्च न्यायलय तथा अन्य आयोगों के पास है |
आगे की राह
दितीय प्रसासनिक सुधार आयोग ने कुछ शिफारीसे की है जिनसे मानवाधिकार आयोग को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके |
- प्रशासनिक सुधार आयोग का मनना है की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष शिकायत करने के लिए एक दुसरे के परामर्श से एक सामान प्रारूप तैयार किया जाये इस हेतु पीड़ित और शिकायतकर्ताऔ का ब्यौरा इस दंग से दिया जाये जिससे आयोगों के बीच डाटा का ताल मेल अच्छे ढंग बैठ पाए|
- साथ ही मानवाधिकार आयोग को कुछ शिकायतों का निपटारा करने के लिए अन्य उपयोगी आयोगों दवरा मानदंड निर्धारित किये जाने चाहिए | ऐसे मुददो में कारवाही के निर्धारण तथा इसके समन्वयन के लिए आयोग में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाये|
- कार्यवाही को अधिक सफल बनाने के लिए प्रत्येक संविधिक आयोग के अन्दर एक आंतरिक पद्धति विकसित की जाये |
- केंद्र तथा राज्य सरकारों दवारा भी गंभीर अपराधो से निपटने के लिए सक्रियता पूर्वक कदम उठाने चाहिए इसके लिए सक्रियता पूर्वक कदम उठाने चाहिए इसके लिए सरकारे मानवाधिकार आयोग की सहायता भी ली जा सकती है |
- भीड़ तंत्र पर भी सरकार को सख्त कानून बनाने की जरुरत है|
- साथ ही सरकारों तथा मीडिया को गंभीर मामलो के साथ साथ आम मामलो पर भी अपनी उदासीनता को त्यागने की सख्त कानून बनाने की जरुरत है|
मानव अधिकार संरक्षण संशोधन अधिनियम विधेयक ,२०१९
बीते दिनों सर्वोच्च न्यायलय ने देश के हर जिले में मानवाधिकार कार्ट स्थापित करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए केंद्र सरकार और राज्यो से मानवाधिकार अदालतों का गठन न किये जाने को लेकर जवाब तलब किया गया जिस हेतु भारत में मानवाधिकारो को प्रभावी बनाने के लिए सरकार दवरा मानवाधिकार संरक्षण विधेयक २०१९ पारित किया गया है | इस विधेयक के जरिये मानवाधिकार अधिनियम १९९३ में संशोधन किया गया है|
- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ के मुताबिक देश के सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशो के हर जिलो में मानवाधिकार हनन के मामलो की सुनवाई के लिए फास्टट्रैक मानवाधिकार अदालतों का गठन किया जाना चाहिए | इन आदेशो के मद्देनजर राष्ट्रीय मानवाधिकारो आयोग को समावेशी और कुशल बनाने के लिए मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन )विधेयक पारित किया गया है | इस विधेयक दवारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से जुड़े कई बदलाव किये गये है|
- पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के पद पर केवल उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था जो भारत का मुख्य न्यायाधीस रह चूका हो परन्तु नये संशोधन के बाद चैयरपरसन के तौर पर सर्वोच्च न्यायाधीस के पूर्व न्यायाधीश भी नियुक्त हो सकते है |
- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ की धरा 3(२)ड में संशोधन कर आयोग के अधिकार क्षेत्र में आयोग के अनुभावी सदस्यों की संख्या २ से बढ़कर 3 कर दी गयी है जिसमें कम से कम एक महिला होगी |
- नये संशोधन द्वारा राष्ट्रीय पिछडा वर्ग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल विकास के अध्यक्ष और चीफ कमिश्नर फॉर परसन विद डीसएबीलिटी को मानक सदस्य के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए |
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य का कार्यकाल ५ बरस से घटा कर 3 वर्ष करने का प्रस्ताव है कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात पुनः नियुक्त होने के योग्य होंगे |
- राज्य मानवाधिकार आयोग में पहले हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को अध्यक्ष बनाने का प्रावधान था अब संशोधन के दवारा हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीस को भी अध्यक्ष बनाने का प्रावधान है
- अब केंद्र सरकार दिल्ली को छोड़ कर बाकि केंद्र शासित राज्यों के मानवाधिकार मामलो को राज्य मानवाधिकार आयोग को सौप सकते है हंलाकि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली से जुड़े मामले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अंतर्गत ही आयेगे | विधेयक में कहा गया है की पेरिस सिधांत के आधार पर हुए संशोधन से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के साथ साथ राज्य मानवाधिकार आयोगों को भी स्वतंत्रता ,स्वायत्ता, बहुलवाद ,और मानव अधिकारो का प्रभावी संरक्षण और संवर्धन किये जाने पर बल मिलेगा |(20 दिसम्बर १९९३ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकार आयोग के संरक्षण के लिए पेरिस सिधान्तो को अपनाया था इन सिधान्तो में दुनिया के सभी देशो को राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाए स्थापित करने के लिए कहा गया था इन सिधांत के अनुसार मानव अधिकार आयोग एक स्वायत और स्वन्त्रत संस्था होगी)
हलाकि सरकार दवारा प्रस्तुत इस विधियक पर विपछ ने सवाल उठाया है की इस संशोधन को लागु होने के बाद मानवाधिकार की इस संस्था के कमजोर होने की आशंका है | कार्यकाल कम होने व् पुनः नियुक्ति का प्रावधान से फिर से नियुक्त के इक्छुक सदस्य सरकार को खुश करने वाली रिपोर्ट्स और सिफरिसे देंगे| जिससे यह संस्था सरकार का आयोग बन कर रह जाएगी ऐसे में यह विधेयक पेरिस सिधान्तो के खिलाफ है |इन प्रावधानो में यह भी विसंगति है की इसमे यह स्पस्ट नहीं है की सरकार सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश की अनुपलाबधता के कारण किसी भी सेवानिवृत न्यायाधीश को आयोग का अध्यक्ष बनाने का प्रावधान करना चाहती है या सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीस के उपलब्ध होने पर भी यह कदम उठा सकती है |विधेयक में यह भ्रम बरकरार है की सेवानिवृत न्यायाधीस के मौजूद होने पर भी किसी अन्य न्यायाधीश को अध्यक्ष बना दिया जायेगा साथ ही आयोग के पास वित्त और खाली पड़े पदों को भरने और मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३ के उचित अनुपालन पर धयान दिया जाना चाहिए |
एन आपतियो के बावजूद मानव अधिकारों को सुरक्षित व् संवर्धित करने हेतु राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित संबद्ध राज्य के साथ लोगो का भी यह कर्त्तव्य होना चाहिए कि वह देश के संजीदा मसलो पर अपनी मौजूदगी जताकर समस्याओ का समाधान खोजने में सरकार की सहायता करे | तब ही सही मामलो में देश में नागरिको के मानवाधिकार मामलो की रक्षा हो पायेगी जब सभी संस्थाये मिल जुल कर देश की एकता अखंडता को बरकरार रखने में एक दुसरे का सहयाग करेगी ,जरुरत है एक पहल की |
डॉ अंजू
असिस्टेंट प्रोफेसर -राजनीति विज्ञान,आर्य कन्या महाविद्यालय हरदोई
9621314966
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
- त्रिपाठी,टी.पी.,मानव अधिकार”
- रमेश दीक्षित,मानव अधिकार दशा एवं दिशा
- डॉ अग्रवाल एच.ओं.मानव अधिकार
- डॉ. माथुर कृष्ण मोहन, स्वतंतोतर भारत में मानवाधिकार
- डॉ कश्यप सुभाष, ह्यूमन राईट एंड पार्लियामेंट
- Kalse Anant,Human right in constitution of india